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पुरुष की स्थिरता और प्रकृति की चंचलता || आचार्य प्रशांत, संत रहीम पर (2018)

2019-11-29 11 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग, फ्री हर्ट्स कैंप<br />१४ मई, २०१८<br />नैनीताल<br /><br />दोहा:<br />कैसे निबहै निबल जन, करि सबलन सों गैर ।<br />जैसे बस सागर विषै, करत मगर सों बैर ।।<br />~ संत रहीमदास जी<br /><br />कमला थिर न रहीम जग, यह जानत सब कोय।<br />पुरुष पुरातन की बहू, क्यों न चंचला होय। (संत रहीमदास जी)<br /><br />प्रसंग:<br />कैसे निबहै निबल जन, करि सबलन सों गैर ।<br />जैसे बस सागर विषै, करत मगर सों बैर || इस दोहे का क्या भावार्थ है?<br />सच्चाई पर कैसे चलें?<br />पुरुष की स्थिरता और प्रकृति की चंचलता क्यों?<br />अपना निर्बलता कैसे त्यागे?

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